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बूंद

सत्य सहज है
सत्य सहज है
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हिमगिरि के कन- कन मे बसती बूंद तेरी ही धरा ,
हो जाता है निर्जन वन जब रुक जाती है धारा,,
सागर भी लहराता है जब मिला है तेरा सहारा ,
घनघोर घटाएं झूम-झूम आह्लादित करती नित धरती,
बूंद-बूंद संयोग बनाया अनुपम जलधर रूप दिखाया ,,,
ज्वार -और भाटा भी आता आकर्षण चंदा से पाता ,
खुशहाली मे झूम -झूम कर तान विखेरे नवकलिका ,
जीवन के नव प्रांगण मे है बूंद -बूंद से नव कालिका ,
हिमगिरि के कन कन मे बसती बूंद तेरी ही धारा ,
जीवन ज्योति सांभाळ रही है बूंद – बूंद यह धारा ,

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